मैं. मैं और मैं (कहानी) हम एकांत में रहते हैं. एकांत अच्छा लगता है. एकांत मुक्त करता है. एकांत एकाग्र होने में मदद करता है. अगर आपको समय का सकारात्मक और सृजनात्मक सदुपयोग करना है तो एकांत को चुनो. एकांत को अपनाओ. एकांत को जीओ, एकांत को पीओ, एकांत को खाओ, एकांत को ओढ़ो, एकांत को पहनो और फिर देखो एकांत आनंद. अरे आप तो ये पढ़ कर घबरा ही गए कि आज किस पागल लेखक से पाला पड़ा है जो एकांत को खाने, पीने, ओढ़ने, पहनने की कह रहा है. एकांत भी कोई खाने, पीने और ओढ़ने पहनने की चीज है? आपने ठीक कहा हमारे प्रिय प्रबुद्ध पाठक. एकांत में जीने, खाने, पीने और ओढ़ने का अर्थ है एकांत में ही खो जाओ. उसी में डूब जाओ जिससे किसी पुरुष को आभास न रहे कि कोई कमला, विमला, निर्मला भी है और स्त्री को आभास न रहे कि कोई मोहन, सोहन और त्रिलोचन भी है. मगर एकांत के विपरीत अकेलापान काटता है. आजकल हम अकेलापन अनुभव कर रहे हैं. अकेलापन क्यों अनुभव कर रहे हैं? क्योंकि आजकल हम सिर्फ मैं, मैं, मैं, मैं, मैं, मैं, मैं, मैं, मैं, मैं, मैं, मैं, मैं, मैं, मैं, मैं ही सुनते रहते हैं. अब आप ही बताएं कि जब मैं, मैं, मैं, मैं, मैं,