#प्रथम_स्वतंत्रता_संग्राम


प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की महानायिया रानी झांसी का अंतिम संस्कार उस साधू ने किया था जो उनको बाल्यकाल में आशीर्वाद देकर चले गए थे. ये संयोग ही कहा जाएगा कि ग्वालियर के जिस नाले को पार करते हुए बिजली (रानी का घोड़ा) को ठोकर लगी और स्वर्गवासी हो गया था, वह स्थान उस साधू की कुटी के करीब था जिसने बाल्यकाल में रानी को आशीर्वाद दिया था.

रानी घायल हो गई थी. उन्होंने साधू बाबा को पहचान लिया था और हाथ जोड़ कर विनती की कि बाबा मेरा शरीर अंग्रेजों के हाथ न लगने पाए. अगर आप असमर्थ भी हो जाओ तो मुझे कटार मार कर खत्म कर देना.

साधू बाबा ने सर पर हाथ फेरते हुए कहा था, "बेटी, आप हमारे आशीर्वाद को भूल गई क्या?"

ज़ख्मों के कारण रानी स्वर्ग सिधार गई. अँगरेज़ निकट थे. इस पर साधू बाबा ने कुटी को ही आग लगा दी थी और रानी का शरीर अग्नि को समर्पित कर दिया और वहाँ से कूच कर गए.

एक बात और. प्रथम स्वतंत्रता युद्ध में अनेक तवायफों ने बढ़ चढ कर भाग लिया था.

कानपुर की अपने समय की सबसे अमीर तवायफ अजीजुनबाई को तो नाना साहिब ने बहन का दर्ज़ा दिया था. अजीजुन बाई नाना की १४ वर्षीय बेटी मैंना देवी के साथ कानपुर में ही रुक गई थी जबकि उन्होंने नाना और तांत्या को कानपुर के बाहर सुरक्षित भेज दिया था.

मैना देवी युद्ध में शहीद हो गई थी और अजीजुन बाई को अंगेजों ने तोप के मुंह पर बाँध कर उड़ा दिया था क्योंकि उसने यह बताने से इंकार कर दिया था कि नाना और तांत्या कहाँ है?  

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