नैनो चिप (कहानी)

शहंशाह-ए-हिंद को अचानक झटका देने की बुरी आदत थी. जब चाहा झटका दे देता था. लगता था जैसे वो शासन कम करता था और झटका देने की अधिक सोचता रहता था. सोचता ही नहीं था, बल्कि झटके देता भी रहता था. वो भी क्या करता? दरअसल उसको भी एक ज़बरदस्त झटका मिला था .
वह झटका दिया था उसके भूतपूर्व शहंशाह-ए-हिंद ने. हुआ यूँ कि उस समय वर्तमान शहंशाह-ए-हिंद सूबेदार-ए-रियासत था. उस समय उसके सूबे में इतना दंगे हुए कि अल्पसंख्यक काफी मारे गए थे.
जब शहंशाह-ए-हिंद को ज्ञात हुआ तो उसे दुख हुआ क्योंकि उससे सारे विश्व में शहंशाह-ए-हिंद की खूब किरकिरी हुई थी. नाराज़ होते हुए उसने सूबेदार-ए-रियासत को कहा था, “उसे राजधर्म निभाना चाहिए था.”
इतना सुनना था कि सूबेदार-ए-रियासत को एक हजार वोल्ट का झटका लगा और उसने निरीह नज़र से शहंशाह-ए-हिंद की ओर देखते हुए कहा था, “बस, और झटका न देना.”
सूबेदार-ए-रियासत पर उस झटके का बहुत गहरा असर हुआ. उसे स्वपन में भी झटका लगने लगा. रातों की उसकी नींद उड़ गई. खाना पीना दूभर हो गया. उसका जीवन नर्क बन गया.
सूबेदार-ए-हिंद ने जो झटका दिया था, वह उस झटके को कभी नहीं भूल पाया. उस झटके से उसे इतनी पीड़ा हुई थी कि वह परपीड़क बन गया. उसे दूसरों को पीड़ा देने से मज़ा आने लगा और उसी से अपने झटके का असर कम करने लगा. अब तो जो भी उसे मिलता उसे झटका देने लगा.
उसका सारा दिन इस चिंतन में गुजरने लगा कि आज रात किसको और कैसे झटका देना है क्योंकि वह झटका सदैव रात को देता था.
एक दिन उसे न जानें क्या सूझी कि रात आठ बजे टीवी पर आकर घोषणा कर डाली कि आज रात १२ बजे के बाद देश में चल रही मुद्रा रद्द हो जायेगी.
झटका इतना ज़बरदस्त था कि हमने यही सुना था कि मुद्रा रद्द हो जायेगी. हमने सोचा सारी की सारी मुद्रा रद्द कर दी गई है. झटका था न. झटके में होश ही कहा रहता है? क्षमा चाहते हैं. भूल हो गई थी.
शुक्र है शहंशाह-ए-हिंद ने ५०० और १००० के नोट रद्द होने की घोषणा की थी. झटका इतना ज़बरदस्त लगा था कि हम यह समझ बैठे थे कि सभी नोट रद्द कर दिए हैं.
जैसे ही शहंशाह-ए-हिंद ने घोषणा की, उसके अंधभक्त और अंधभक्त मिडिया जो गोदी मिडिया के नाम से बदनाम हो चुका था, अति सक्रिय हो गया. गोदी मिडिया ने तो नोटबंदी को मास्ट स्ट्रोक तक कहा डाला था.
एक एंकर ने तो एक हज़ार कदम आगे बढ़ कर ढिंढोरा पीट डाला कि २००० के नोट में ऐसी चिप लगी है जो ज़मीन में दबे २००० के नोटों को भी ढूँढ डालेगा और इस प्रकार काले धन पर लगाम लगेगी.
हम चौंके. नोटों में ऐसी चिप जो ज़मीन में दबे नोटों को भी ढूँढ डालेगी?
हमें हनुमानजी स्मरण हो आये जो मणियों को दाँतों से तोड़ तोड़ कर उनमें अपने आराध्यदेव श्री राम को ढूँढने लगे थे. सीताजी ने पूछा था, “नटखट हनुमान, ये क्या कर रहे हो? बहुमूल्य माणिकों को तोड़ रहे हो?”
हनुमान बोले, “माते’ बहुमूल्य होंगे आपके लिए. मगर जब तक इनमें मेरे आराध्यदेव श्री राम नहीं होंगे तो मेरे लिए ये बेकार हैं.”
हमने भी सोचा, “अगर नैनो चिप लगी है तो ढूंढनी चाहिए. चिप अवश्य मिलेगी. आखिर शहंशाह-ए-हिंद की विशिष्ट एनक्रानी ने घोषणा की थी. तो क्यों न २००० के नोटों को फाड़ फाड़ कर नैनो चिप ढूँढी जाए.”
फिर क्या था? हमने दो हजार वाले दस नोट लिए और एक एक कर फाड़ना शुरू कर दिया.
पास बैठा एक मित्र बोला, “अरे,अरे, ये क्या कर रहे हो?”
हमने कहा, “शहंशाह-ए-हिंद के राज जानने वाले भक्त ने कहा है कि दो हजार के नोट में नैनो चिप है. वो ढूँढ रहे हैं.”
“पागल हुए हो क्या? वो भक्त नहीं अंधभक्त है. शहंशाह-ए-हिंद और उसके अंधभक्त यूँ ही फेंकते रहते हैं. किस पर भरोसा कर रहे हो?”
हम फिर भी नहीं माने और खोज प्रक्रिया में दस नोट फाड़ डाले मगर चिप नदारद.
तब हमें अपनी बेवकूफी पर न केवल झुंझलाहट हुई बल्कि हँसी भी आई. अब आप खुद सोचो कि ये दोनों प्रतिक्रियाएं क्यों हुई? आम बात तो यह है कि अपनी बेवकूफी पर या तो कोई झुंझला सकता है या हँस सकता है? दोनों कैसे हो सकती हैं?
अरे भई आप भूल गए ना?दोहरा झटका जो लगा था.
बीबी को पता लगा तो उसका गुस्सा आसमान पर. बोली, अगर मुझे पता होता कि आप इतने बेवकूफ हो तो मैं आपसे कभी शादी न करती.”
हम कहाँ चूकने वाले थे. नहले पर दहला मारते हुए हम बोले, “इतने बेवकूफ न होते तो तुम से शादी कैसे करते?”
इससे पहले वो झाड़ू या बेलन उठाती, हम सिर पर पैर रख कर भागे और अपने बैंक मेनेजर के पास पहुँच कर भी पीछे मुड़ कर नहीं देखा.
जाकर उनको फटे नोट दिखाए. फटे नोट देख कर वे भी चौंक पड़े.
“बोले ये नोट फटे कैसे?”
हमने कहा, "चिप ढूँढ रहे थे."
ठहाका लगा कर वे भी हँस पड़े और बोले, "पंडितजी, आप पढ़े लिखे और विद्वान हैं. किस की बातों में आ गए?"
हमने कहा, "भाई, शहंशाह-ए-हिंद के इशारे बिना पत्ता तक तो हिलता नहीं. उन्होंने कहा है कि दो हजार के नोट में चिप है, तो क्या वे झूठ बोलेंगे?"
वे मुस्कराते हुए बोले, "आप मुझे बाताओगे कि उन्होंने सच कब बोला था."
हम अपना सिर खुजाते रह गए. हमने देखा कि मेनेजर महोदय रहस्यमय तरीके से मुस्करा रहे थे. पता नहीं हमारी बेवकूफी पर मुस्करा रहे थे या शहंशाह-ए-हिंद के झूठे जुमलों पर.
चाहे जिस पर मुस्करा रहे हों, फिर भी मेनेजर भाई का शुक्रिया कि उन्होंने हमारा जो नुक्सान हुआ था, वो पूरा कर दिया था. उन्होंने हमारे फटे नोट बदलवा दिए थे.
हमने चैन की साँस ली क्योंकि अब हम अपनी प्रिय बीबी का सामना आँखों में आँखें डाल कर सकते थे.
अगर प्रबंधक महोदय हमारे नोट नहीं बदलते तो आप खुद सोचें कि बीबी हमारी क्या हालत कर देती? हमसे शादी करने पर पाश्चाताप वह पहले ही व्यक्त कर चुकी थी. शुक्रिया प्रबंधक महोदय शुक्रिया.







Comments

Popular posts from this blog