#मन_की_बात
अंदर से आवाज़ आई,
“रात भर घोड़े बेच सोते रहते हो,
दिन में मस्ती से उंघते रहते हो,
हूँ,”
हमने कहा,
“प्रिये,
घोड़े बेच कर ही सही आपके
कथानक के पुष्प चुनते रहते हैं,
दिन में उन पुष्पों की माला
बुनते रहते है, और बताएं?”
“हूँ”
कह चुप हो गई.



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