जान बची, लाखों पाए  (कहानी)

भगवान राम अपने प्रिय सखा हनुमान के साथ पृथ्वी पर विचरण कर रहे थे. यह देख कर दोनों खुश थे कि पृथ्वी पर अब उनके कितने मंदिर बन गए है.

गली गली और नुक्कड़ नुक्कड़ पर हनुमान जी के मंदिर बन चुके थे. फिर श्री राम तो उनके भी स्वामी थे. स्वामी पीछे कैसे रह सकते थे. कुछ दूर चले होंगे कि उनको लम्बे सफेद चोगे में एक महापुरुष दिखाई पड़े.

श्री राम बोले, “मित्र, आप यहाँ कैसे?”

“बिल्कुल वैसे ही जैसे आप.”

तभी वहाँ दो देवस्वरूप और आ गए. श्री राम और सफेद चोगे वाले ने बाहें फैला कर उनका भी स्वागत किया.

हनुमान चारों को एक साथ देख कर और उनको आध्यात्मिक चर्चा करते देख गदगद हो गए. मन ही मन बोले ऐसे स्वर्ण अवसर भला मिलते कहाँ हैं?   

चारों बतिया रहे थे और हनुमान उस निरंकार की बातों का आनंद ले रहे थे जिसको दोपाये धूर्त प्राणी ने चार भागों विभाजित कर दिया था.

हनुमान की खुशी श्री राम की आँखों से छिपी न रह सकी.

वे बोले, “हनुमान, इन तीन को भी पहचानते हो क्या?”

हनुमान देवस्वरुपों के दर्शन कर इतने भावविभोर हो गए थे कि वे एक शब्द भी नहीं बोल पाए. हां, श्री राम के प्रश्न के उत्तर में वे चारों के सम्मुख दंडवत अवश्य हो गये थे.

यह देख कर चारों ने हनुमान को कन्धों से पकड़ कर उठाया और उनको अपनी बाहों में भर लिया. पांचों के आंसू एक दूसरे के कन्धों को भिगो रहे थे. एक दूसरे को गले लगा कर पांचों भावविभोर थे.

उसी समय तड़ातड़ गोलियां चलीं और जय श्रीराम, जय बजरंग बली के नारे लगने लगे. दूसरी ओर से अल्लाह-ओ-अकबर का नारा गूंजा.

चारों देव स्तब्ध.

इधर उधर देखा कि कहीं छिपने की जगह मिल जाये. सामने एक झौंपड़ी दिखाई दी तो तीनों देव उधर लपके और उसमें जा छुपे. चूंकि जय श्री राम के नारे लगे थे, राम वहीं डटे रहे. वे जानना चाहते थे कि उनका नाम लेकर रंग में भंग किसने डाला? कौन हैं वे दुष्ट जो उनका नाम बदनाम कर रहे हैं. श्री राम बहुत लज्जित अनुभव कर रहे थे.

श्री राम ने इधर उधर देखा, ऊपर नीचे देखा, इस कौने से उस कौने में झांक कर देखा मगर कुछ समझ नहीं आया.

हैरान होकर उन्होंने देखा कि इधर उधर लाशें पड़ी हैं. उन लाशों में दो तीन पुलिस वालों की लाश भी हैं. कुछ लोग ज़ख्मी भी थे. वे खून से लथपथ थे.

प्रभु श्री राम ने गंभीर मुद्रा बना कर हनुमान जी की ओर देखा और बोले, "हनुमान, ये सब क्या है?  बजरंग बली का नारा लगाने वाले तुम्हारे दल के लोग हैं क्या?”

हनुमान जी ने कान पकड़ते हुए कहा, “नहीं, प्रभु. मैंने ऐसा कोई दल नहीं बनाया.”

“फिर ये कौन हैं?”

हनुमान जी दंडवत हो गये और बोले, "क्षमा करना प्रभु! ये न मेरे दल के हैं और न आपके दल के हैं. ये एक नेता के गुंडे हैं. और ये अपने नेता के लिए काम करते हैं."

प्रभु श्री राम और गंभीर हो गये और बोले, "तब इन लोगों को अपने नेता की जय जयकार करनी चाहिए, मेरी और तुम्हारी क्यों?"

"नहीं प्रभु! ऐसी मारकाट और गोलीबारी की  हरकतों के बाद अगर ये अपने नेता की जय जयकार करेंगे तो नेता बदनाम हो जाएगा। उसे चुनाव भी लड़ना है. वो बदनाम हो जाएगा तो वह चुनाव में हार भी सकता है. इसलिए ये उसकी नहीं आपकी जय जयकार करते हैं। ऐसा ही इन्हें सिखाया गया है।" हनुमान जी ने उत्तर दिया।

श्री राम को डटे देख कर तीनों देवों को भी हौंसला हुआ और वे झौंपड़ी से बाहर आ गए.  उनमें से एक जिसने सफ़ेद चोगा पहन रखा था, बोला, “प्रभु, लगता है हमने धरती पर आकर भूल की है. मैंने तो सोचा था कि इतने सारे चर्च बन गए हैं. अब हमारी इज्ज़त होगी. मगर यहाँ तो वैसी ही हिंसा है जैसी पहले थी.

उसी समय लम्बा सफ़ेद चोगा पहने एक आदमी वहाँ आया और सफ़ेद चोगे वाले देव से बोला, “प्रभु, मैंने आपको पहचान लिया है. बेहतर हो आप अपने लोक चले जाओ नहीं तो अब की बार बहुत बुरी तरह से सूली पर चढ़ाये जाओगे. हमारी दुकान आपके बिना ही बहुत अच्छी चल रही है."

चारों देवों ने हनुमान जी की बात पहले ही सुन ली थी जिसको सुन कर वे चौंक पड़े थे. चौकन्ने होकर चारों अपने धाम की ओर दौड़ पड़े. पीछे पीछे हनुमान जी दौड़ रहे थे. पाँचों ने स्वर्ग के अंदर पहुँच कर भी पीछे मुड़ कर नहीं देखा.

स्वर्ग में पहुँचे ही थे कि द्वार खटखटाने की जोरदार आवाज़ आई.

द्वारपाल ने बिना दरवाज़ा खोले ही पूछा. “कौन? \

“हम हूँ विश्वगुरु.”

“कौन विश्वगुरु?”

“विश्वगुरु को नहीं जानते? विश्वगुरु वो जो एक अकेला सब पर भारी.”

“क्या चाहियें,” द्वारपाल ने हकलाते हुए पूछा.

“चाहिए नहीं बल्कि हमको स्वर्ग के स्वामी को ये समझाना है कि ब्रह्माण्ड कैसे काम करता है? अपना ब्रह्माण्ड छोड़ कर वे क्या करने गए थे धरती पर जिसके हम विश्वगुरु है?”

हनुमान जी कान लगा कर सुन ही रहे थे.

वे बोले, “हे प्रभु, ये वही नेता है जो जय श्री राम के नारे लगवा कर गोलीबारी करवा रहा था और हमें बदनाम करवा रहा था.”

श्री राम बोले, “वत्स, जो तुम्हें ठीक लगे, वो करो. हमारा पीछा छुड़वाओ.”

“जो आज्ञा प्रभु,” इतना कह कर हनुमान जी ने अपनी गदा उठाई और द्वारपाल से बोले, “खोल दो दरवाज़ा.”

जैसे ही द्वार खुला, हनुमान जी ने अपनी गदा लहराई और बोले, “दुष्ट तुझे कर्नाटक में सीख दी थी. इतनी जल्दी भूल गया?”

इतना सुनना था कि आगे आगे विश्वगुरु और पीछे पीछे श्री हनुमान. विश्वगुरु की सांस फूल चुकी थी. वो लड़खड़ा कर गिर पड़ा और  पृथ्वी की ओर लुढकता चला गया.

उसे लुढ़कते देख कर हनुमान जी ठहाका लगा कर हँस पड़े और बोले, “खबरदार, अब जय श्री राम के नारे लगवाए. राम राम किया कर.


विश्वगुरु ने मन ही मन कहा, “जान बची, लाखों पाए.”


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