अत्याचारी तानाशाहों का अंत बुरा होते हुए देखा गया है. हिटलर याद होगा न? हिटलर ही क्यों, क्रूर बादशाह या तानाशाह अधिकतर दर्दनाक मौत को प्राप्त हुए हैं.
अलाउद्दीन खिलजी. क्रूर कहना भी क्रूरता का अपमान होगा. अव्वल दर्जे का कमीना, धोखेबाज़, लम्पट और बेहया तानाशाह. पता है वह कैसे मरा?
उसके शरीर में पानी भर गया था. कोढ़ हो गया था. शरीर से बदबू आने
लगी थी. कहा जाता है कि अंतिम दिनों में तो कोई उसकी देखभाल तक नहीं करता था.
तथ्य यह है कि खिलजी को बहुत कष्टप्रद मृत्यु प्राप्त हुई थी. अंतिम दो वर्षों में उसे कोढ़ हो गया था और अंग सड़ने लगे थे. शरीर से इतनी बदबू आती थी कि कोई उसके पास जानें से भी कतराता था.
हालांकि ऐसी बीमारियां किसी सभ्य-सज्जन व्यक्ति को भी हो सकती हैं मगर जब किसी अत्याचारी, असभ्य, बर्बर और क्रूर के साथ ऐसा होता है तो उस
विश्वास को बल मिलता है कि आदमी को उसके कुकर्मों का फल यहीं मिल जाता है. यह होता भी है और ऐसा होना ही चाहिए.
ऐसा केवल खिलजी के साथ नहीं हुआ बल्कि मध्यकाल के हर अत्याचारी शासक की मृत्यु बड़ी कष्टप्रद रही थी.
मुगलों की तो परम्परा बन गयी थी कि बुढ़ापे में अपने बेटों को आपस में लड़ते मरते देखते हुए तड़प तड़प कर मरना नसीब होता था.
अकबर, जहांगीर, शाहजहां, औरंगजेब बुढ़ापे में अपने बच्चों को लड़ते मरते देखते हुए मरे थे.
पारिवारिक षड्यंत्रों में अपने दो बेटों मुराद और दनियाल की मौत देख कर अकबर टूट चुका था. वह जहांगीर के आगे गिड़गिड़ाता रहा मगर वह अपने बाप को तड़पाता रहा और उसके प्रिय जनों को मारता रहा.
अबुल-फजल जैसे अकबर के विश्वासपात्र और अन्य करीबियों को मार डाला था. अकबर गिड़गिड़ाता रहा और गिडगिडाते हुए ही मरा.
जहांगीर के साथ भी यही हुआ।
शाहजहां को दुनिया एक प्रेमी के रूप में जानती है मगर वह भी उतना ही क्रूर था जितने अन्य मुगल थे. दूसरे मज़हब वालों परअत्याचारों के मामले में वह दूसरे बादशाहों से कम नहीं था. उसकी मृत्यु तो और भी दुखद हुई थी.
उसके प्यारे बेटे दारा शिकोह का कटा हुआ सिर खंजर की नोंक पर टांग कर पूरे आगरा में घुमाया गया था और अंत में कैदी शाहजहां के आगे थाल में रख कर सिर पेश किया गया था. जहांआरा जो शाहजहां को बेइंतहा मोहब्बत करती थी, ही शाहजहाँ के पास रहती थी. दारा शिकोह केकटे सिर को देख कर वह भी चीख पडी थी.
यह सब किया उसके दूसरे बेटे औरंगजेब ने. अपने एक बेटे द्वारा की गई अन्य सभी बेटों की हत्या पर रो चुका शाह उस कैदखाने में कैसे तड़प तड़प कर मरा होगा, इसका सहज अंदाज लगाया जा सकता है.
ऐसा केवल इन्ही के साथ नहीं हुआ है, हिटलर का ज़िक्र हम पहले ही कर चुके हैं. हर अत्याचारी शासक के अंतिम समय की दशा लगभग ऐसी ही रही है. और सबसे बड़ी बात यह रही कि अंतिम समय में सत्ता से धकिया कर सबको बाहर किया गया था. सत्ता हस्तान्तरण सदाखूनखराबे के बाद ही हुआ.
हमें लगता है इतिहास की किताबों में क्रूर बादशाहों की मृत्यु अवश्य पढ़ाई जानी चाहिये ताकि सबको पता रहे कि कर्मों का हिसाबयहीं होता है. एक सभ्य समाज के निर्माण के लिए यह आवश्यक है कि जनता असभ्यों के दुखद अंत की कथायें पढ़े और याद भी रखे. #सत्य_शिवम_सुन्दरम
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