#राहुलगाँधी_होना_सबके_वश_की_बात_नहीं I आप राहुल गांधी होने का मतलब जानते हैं, नहीं न। तो चलिए हम बताते हैं।

राहुल गांधी, जिसने लगभग साढ़े 13 साल की उम्र में गोलियों से छलनी अपनी दादी की काया को देखा। काया यानी देह, गोलियों से पार्थिव हुई देह।

सोचिए, किशोर मन पर उन गोलियों ने क्या असर किया होगा, जिन गोलियों को दादी ने अपने सीने पर झेला था।

सोचिये, सोचिये और हो सके तो कल्पना में ही सही, स्वयं को एक क्षण के लिए राहुल गांधी की जगह रख कर देखिये। तब बात ज्यादा अच्छे से समझ में आएगी।

दादी की हत्या के लगभग आठ साल बाद तब, जब राहुल गांधी युवावस्था की दहलीज पर पहुंचे थे, उन्हें अपने पिता का अंतिम संस्कार करना पड़ा।

पिता की पार्थिव देह को मुखाग्नि देने से पहले चेहरा देखने तक का मौका नहीं मिला। दरअसल, पिता का चेहरा था ही नहीं। सफेद कपड़े में सिलकर जो आया था, उसे ही पार्थिव देह मान लिया गया था।

लगभग 11 महीने पहले पिता से मुलाकात हुई थी और 11 महीने बाद पिता के शव से मुलाकात हुई और सफेद कपड़े में सिला हुआ शव भी ऐसा कि खोलने की मनाही थी।

इस स्थिति में राहुल गांधी पर क्या बीती होगी। एक बार फिर स्वयं को राहुल गांधी की जगह रखिये और उस स्थिति की कल्पना कीजिए, जिससे राहुल गुजरे होंगे।

उसके बाद ही राहुल की मां, बहन और राहुल की खुद की छवि को खराब करने का अभियान चला। और क्या क्या नहीं कहा गया। इसमें नेहरू, इंदिरा, राजीव के खिलाफ चले अभियान को भी मिला दें और फिर सोचें कि जब राहुल को पता चलता होगा कि उनके परिजनों के बारे में क्या क्या कहा जा रहा है तो वे कैसा महसूस करते होंगे।

फिर एक पूरे प्रचार तंत्र को राहुल गांधी को पप्पू साबित करने में लगा दिया गया और इस परियोजना पर कम से कम चार सौ करोड़ रुपए खर्च किए गए।

जब राहुल गांधी सुनते होंगे कि लोग उन्हें पप्पू कहते हैं, नकारात्मक अर्थों में, तो उनके दिल दिमाग में क्या आता होगा।

अब तो सोशल मीडिया का दौर है और इस मीडिया को ट्रैक करने वाली वेबसाइट कीहोल की रिपोर्ट कहती है कि भारत में विभिन्न वीडियो शेयरिंग प्लेटफार्म पर रोज लगभग दो हजार वीडियो ऐसे अपलोड किए जाते हैं, जिनके अपलोडर का एक सूत्रीय कार्यक्रम होता है, गांधी परिवार की छवि खराब करना।

इस तरह के वीडियो अपलोड करने वाले लोग तो खैर चिरकुट होते हैं लेकिन देश का प्रधानमंत्री भी एकाधिक बार राहुल गांधी की मां को राष्ट्रीय विधवा कह चुका है। क्या इस तरह की बातों का राहुल गांधी पर असर नहीं पड़ता होगा।

शायद नहीं, क्योंकि उसने इतने झंझावात झेले हैं कि फौलाद हो गया है वह।

और इसलिए वह अकेला उस सत्ता से टकरा रहा है, जिसके साथ देशी विदेशी कंपनियां हैं। अडानी हैं, अम्बानी हैं, आरएसएस है, इजरायल है, बहुत सारे चरमपंथी ग्रुप हैं, और दिन रात महिमामण्डित करने वाला मीडिया है। मामला कुछ वैसा ही है कि रावण रथी, विरथ रघुबीरा।

वामपंथियों को छोड़ दें तो विपक्ष का कोई भी दल सत्ता से ईमानदारी से नहीं टकरा रहा है। और राहुल गांधी का साथ पूरी कांग्रेस भी कहां दे रही है। राहुल के करीबी कांग्रेसी राहुल के ट्वीट को तो रीट्वीट करते नहीं, ये क्या खाक लड़ेंगे।

राहुल अकेला टक्कर ले रहा है।

पर आज उपरोक्त परिस्थितियों ने राहुल गांधीको फौलाद बना दिया है। द्वारा श्री #राजेंद्र_चतुर्वेदी




Comments

Popular posts from this blog