अंधभक्त तोता (कहानी)
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अचानक हमें तोता पलने का शौक चर्राया था और बहेलिये से एक तोता खरीद लिया था. बहेलिये ने उसकी खूब तारीफ़ की थी. हम उसकी बातों में आ गए थे.
हमने पूछा, “तोते का कोई नाम भी है या नहीं?”
“साब, गंगा जाओ तो कहना गंगाराम और यमुना जाओ तो जमुनाराम,” बहेलिये ने कहा.
“और कहीं न गये; यानि घर पर ही रहे तो क्या बोलें?” हमने पूछा.
इससे पहले कि बहेलिया कुछ कहता तोता बोला, “पिट्ठू, पिट्ठू.”
‘पिट्ठू’ सुन कर हम चौंके. मगर बहेलिये को दाम दे चुके थे और वह चंपत हो चुका था.
अगले दिन पिट्ठू सुबह सुबह चिल्लाने लगा, “उठो मोती, जय श्री राम, उठो मोती, जय श्री राम, उठो मोती, जय श्री राम.”
“अबे यूं किस पर और क्यूँ चिल्ला रहा है?”
“तुझ पर.”
“क्यों?”
“दाना पानी नहीं देना क्या? क्या तूं मोरों को ही दाना खिलाता रहेगा?”
“अबे हम शशांक हैं. हमारा मोरों से क्या लेना देना? अरे रामू, जरा पिट्ठू को अमरूद के टुकड़े तो दे दे. ये हमारी नींद खराब किये दे रहा है.”
“हमें अमरूद नहीं, काजू दो. अखरोट दो. किशमिश दो. पिश्ता दो. जो रोज खिलाया करते थे, वही दो.”
काजू की रोटी और मोरों को दाना सुन कर हम एक बार फिर चौंके. सोचा कि बहेलिया रगड़ा मार गया. किसी मोती का तोता हमारे पल्ले बांध गया.
“अबे तूने भांग का गोला तो नहीं चढ़ा लिया है!”
“अबे तूँने नींद की गोलियाँ तो नहीं खा ली हैं,” पिट्ठू ने ईंट का ज़वाब पत्थर से देते हुए कहा.
“क्या बकता है? मालिक से बात करने का सलीका तक नहीं सीखा क्या?”
“खुद काजू की रोटी, काजू बादाम और किशमिश की खिचड़ी और दलिया उड़ाते हो और हमें अमरूद? और हमें सलीका सिखाते हो? आज हमें कैसे भूल गए. ये नहीं चलेगा.”
पिट्ठू की बदतमीजी देख कर डांट डपट करना हमें ठीक नहीं लगा. अब हमें सलीके से बात करना ही उचित लगा. विनम्र होना ही उपयुक्त लगा.
हमने पूछा, “पिट्ठू जी, ये मोती. मोर और काजू का क्या चक्कर है? हमें तो कुछ समझ आ नहीं रहा.”
हमारे प्रश्न का उत्तर तो दिया नहीं मगर पिट्ठू चिल्ला उठा, “अब आई न अकल.”
हमें इस पर फिर से गुस्सा आ गया. हम बोले, “साफ़ साफ़ बताओ कि ये मोती. मोर और काजू का क्या चक्कर है?”
पिट्ठू हमारे प्रश्न को एक बार फिर से हजम कर गया और बोला, “हम कहाँ हैं?”
तब तक रामू अमरूद लेकर आ गया था.
पिट्ठू का प्रश्न सुन कर वह बोला, “पिट्ठू, ये टटपूँजिये शशांक का घर है. ये एक लेखक का घर हैं. लेखक के यहाँ दाल-रोटी चलानी कठिन है और तुम काजू, किशमिश और अखरोट मांग रहे हो. तुम होश में तो हो न ?”
पिट्ठू एक बार फिर चिल्ला उठा, “हम तो मोती के घर में थे? हमें यहाँ कौन लाया?”
“मोती कौन?”
“आर्यावर्त का बादशाह.”
“मगर हमने तो तुझको बहेलिये से लिया है,” रामू बोला.
“हमें बहेलिये को किसने और क्यों दिया?” पिट्ठू ने चिंतित होकर कहा.
“वो हमें क्या पता? हमने तो तुझे दो हजार का गुलाबी नोट देकर बहेलिये से खरीदा है,” रामू ने कहा.
“मुझे खरीदा? और दो हजार के नोट से? वो तो मोती ने बंद कर दिया था. तुम्हारे पास दो हजार का नोट कहाँ से आया?”
यह सुन कर रामू तो बेहोश हो गया और हम बिस्तर के बाहर निकल कर उछल पड़े. किसी अनहोनी की आशंका के कारण हमारी सोच लुंज पुंज हो चुकी थी.
पिंजरे के पास बैठी जमुनी चिल्ला उठी, “अरे मूर्ख पिट्ठू, हम न कहती थी कि वो रेल बेच रहा है. वायुयान बेच रहा है. कारखाने बेच रहा है. जो सामने आता है उसी को बेच रहा है. एक दिन आएगा कि वो तुझे और मुझे भी बेच देगा. मगर तूं तो उसका पिट्ठू बना रहा. तूने मेरी एक न सुनी.”
पिंजरे के बाहर बैठी जमुनी को देख कर पिट्ठू चौंका और बोला, “तूं पिंजरे से बाहर कैसे?”
“अरे मूर्ख. ये पूछ कि तूं पिंजरे में कैसे?”
“बता तो ये माजरा क्या है?”
“अरे अकाल के अंधे पिट्ठू, जब मोती के पास बेचने को कुछ न बचा तो उसने तुझे बेच डाला.”
“फिर?”
“फिर क्या? पिंजरे का दरवाज़ा खुला था. मैंने मौका देखा. इसके पहले कि वो मेरा भी मोल भाव करता, मैं उड़ चली.”
“किधर?”
“बहेलिये के पीछे. बाबूजी ने तुझे खरीदा, मैं इनके पीछे लग ली. पिट्ठू, तूं मेरे बिना रह सकता है, मैं तेरे बिना नहीं,” जमुनी ने अपने प्रेम का खुलासा करते हुए कहा.
जमुनी का प्रेम देख कर हमारी आँखों में आंसू आ गए और फर्श पर टप टप गिरने लगे.
हैरान परेशान पिट्ठू तभी से बेहोश पड़ा है और जमुनी उसकी सेवा में लगी है.
हमने पिट्ठू को भी पिंजरे से बाहर कर दिया है जिससे वह और उसकी बेगम स्वतंत्र जीवन जी सकें.
रामू ने उठ कर दोनों के लिए अमरूद के टुकड़े रख दिए हैं. लाल लाल ताज़ा मिर्चे रख दी हैं. उसने हलवे के लिए रखे काजू और किशमिश के चंद दाने भी उनके सामने रख दिए हैं. देखते हैं बेचारों को कब भूख लगती है.
रामू बोला, “मालिक, माफ करना.”
“किस बात के लिए?”
“हम तो काजू किशमिश बिना बना हलवा खा लेंगे. हो सकता है गंगाराम और उसकी बेगम को उनकी हमसे अधिक ज़रूरत हो.”
रामू की आँखों से टप टप आंसू गिर रहे थे. हमारी आँखें तो पहले से ही गीली थी.
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